चाय
देश के लिए एक संभावना है
चाय न हो तो राष्ट्रीय अखबार अधूरे हैं
सरकार के खिलाफ उफनता विमर्श है चाय
नेताओं को दी गईं गालियों का स्वाद है
संभावित प्रेम
बातों की गुंजाइश है चाय
प्यार करने और साथ रहने का बहाना है
जहां तक ज़िंदगी की बात है
जब तुम मेरे लिए कम चीनी वाली चाय बनाती हो
तो मैं समझ जाता हूं
कि सबकुछ ठीक नहीं है
चाय मिले तो सहूलियत
न मिले तो दुश्वारियां हैं
जिंदगी की तलब है चाय
चाय अदरक वाली कविता है
देश में लोकसभा चुनाव का प्रचार जोरों से चल रहा है। हर ओर केवल चुनावी बयानबाजी का शोर है, विवादित बयानों से सुर्खियां बटोरी जा रही हैं। कोई भी भाषा, संस्कार और संस्कृति की बात नहीं कर रहा है। वेबदुनिया ने इस संबंध में बात की संस्कृत भारती के अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख श्रीश देवपुजारी से और जाना कि राजनीति में बयानों का स्तर क्यों गिर रहा है और संस्कृत के माध्यम से भारत कैसे विकास के पथ पर आगे बढ़ सकता है? उत्तर और दक्षिण भारत के बीच के गैप को संस्कृत से कैसे पाटा जा सकता है?